उत्तराखंड पर्व नव वर्ष-बिखौती की-हार्दिक-शुभकामनाएं
देवभूमि उत्तराखंड में कई मंदिर और इससे जुड़ी मान्यताएं हैं, जिनके बारे में जानकर आपका का भी मन जरूर करेगा जाने का और आज हम आपको ऐसे ही अद्भुत मेले के बारे में बताएंगे, जो उत्तराखंड में बहुत प्रसिद्ध है.
हिंदुओं के नए साल के साथ उत्तराखंड में 14 अप्रैल नया साल के रूप में मनाया जाता है.उत्तराखंड में विषुवत् संक्रान्ति ही को बिखौती नाम से भी जाना जाता है.आप सभी को बिखौती एंव चैत्र नवरात्रि बहुत बहुत शुभकामनाएं
13 अप्रैल से उत्तराखंड देवभूमि में स्याल्दे बिखौती मेला भी शुरू होता है। स्याल्दे बिखौती मेला हर साल बैसाख के महीने में आयोजित किया जाता है। मेला चैत्र माह की अंतिम तिथि से शुरू होता है.
उत्तराखंड देवभूमि के द्वाराहाट ज़िले में लगने वाले इस प्रसिद्ध मेले में बहुत दूर दूर से लोग देखने आते है, यहां मेला द्वाराहाट के प्रसिद्ध भगवान विभांडेश्वर के मंदिर के लिए आयोजित किया जाता है | मेले का आयोजन दो भागों में किया जाता है, पहले मेला चैत्र मास की अन्तिम तिथि को विभाण्डेश्वर मंदिर में लगता है.दूसरा मेला वैशाख मास की पहली तिथि को मंदिर से आठ किमी दूर द्वाराहाट बाजार में लगता है.
इस दिन घरों में पकोड़े,पूड़ी ,सावंल,सूजी ,मीठा भात ,आदि स्वादिष्ट भोज तैयार किया जाता है और नए कपड़े पहनने की परंपरा भी है ,और परिवार के साथ मिल कर पूजा पाठ किया जाता है अपने इष्ट देवता या कुल देवता को भोग लगा कर तब साथ मिल भोज किया जाता है.
स्याल्दे बिखौती मेला की खास बात
स्थानीय मान्यता के अनुसार इस दिन स्नान (नवाना) करने का बहुत महत्व है, जो व्यक्ति उत्तरायणी पर नहीं नहा सकता, कुम्भ स्नान के लिए नहीं जा सकता उनके लिए इस दिन स्नान करने से विषों का प्रकोप नहीं रहता है। मेले की तैयारियाँ गाँव-गाँव में एक महीने पहले से ही शुरु हो जाती हैं.
चैत्र मास की फूलदेई संक्रान्ति से मेले के लिए वातावरण तैयार होना शुरु होता है। गाँव के प्रधान के घर में झोड़ों का गायन प्रारम्भ हो जाता है। इस मेले के दौरान गांवों में एक खास अंजज में एक-दूसरे के हाथ थाम कर और कदम सेते हुए हुए कुमाऊं के प्रसिद्ध लोक नृत्यों झोडे, चांचरी, छपेली आदि का पारंपरिक वस्त्रों से इस मेले में विशेष श्रृंगार होता है। चैत्र मास की अन्तिम रात्रि को विभाण्डेश्वर में सभी दलों के लोग शामिल हो जाते है. प्रतेक दल का अपना झंडा होता है.
यह लोगो की संख्या इतनी विशाल होती है इसलिए लोग अपने दल का झंडा लेकर इस मेले में शामिल होते है | अल्मोड़ा जनपद के पाली पछाऊँ क्षेत्र का यह एक प्रसिद्ध मेला है | इस क्षेत्र के लोग मेले में विशेष रुप से भाग लेते हैं। इस मेले में भाग लेने के लिए स्थानीय लोग पहाड़ो से घनघोर अँधेरी रात में हाथों में मशालों के सहारे नर्तकों की टोलियाँ बन कर शामिल होते है। स्नान करने के बाद पहले से निर्धारित स्थान पर नर्तकों की टोलियाँ इस मेले को सजीव करने के लिए जुट जाती है.
दोस्तों उत्तराखंड में धीरे धीरे पुराणी परंपराएं लुप्त होती जा रही है जिस का सबसे मुख्य कारण है लगातार उत्तराखंड से हो रहा पलायन है हम अब अपनी पुराणी परंपराओं को भूलते जा रहें हैं ,आने वाली पीढ़ियां शायद ये सब देख भी न पाए क्यूंकि बहुत तेज़ी से सब लुप्त होता जा रहा है.
रवि पालीवाल व्लॉगस का आप सभी से निवेदन है की आप आने वाली पीढ़ियों को अपनी सारी उत्तराखंड के परंपराओं से अवगत करवाएँगे आप भी अपनी देव भूमि की परंपराओं सदा याद रखें ,आप सभी नीचे कमेंट कर के बातएं की उत्तराखंड में पालयन को कैसे रोका जा सकता है ?
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सभी से निवेदन है
की आप को (Ravi
Paliwal Vlogs) के
माध्यम से उत्तराखंड से
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उद्देशय है की उत्तराखंड
की देव संस्कृति का प्रचार प्रसार
समस्त जनमानष तक पहुंचे !!
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